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Thursday, February 14, 2013

"आधुनिकता की उपज - आधुनिक रावण व दामिनी"

"आधुनिकता की उपज - आधुनिक रावण व दामिनी" 
विगत दिनों घटे सामूहिक बलात्कार कांड से देश भर में जनाक्रोश के बाद भी स्थिति यथावत रहने की टीस समाज में बनी रहना, व इसे लेकर समाज के नर नारी में टकराव बनाने का प्रयास करते तत्व। यह दृश्य जिन्हें कचोटता नहीं, वे इसे महिला विरोधी हिंसा या पुरुषों का दोष बताएँगे। देश में कुकुरमुत्ते जैसे गली -2 उगते रावण व दमिनीयों के शीलहरण की इन घटनाओं का कारण, जब वैलेंटाइन की कथित प्रगति शील आधुनिक अपसंस्कृति की उपज कहा जाता है, इन्हें आपत्ति होती है। किन्तु वामपंथियों व शर्मनिर्पेक्षों या इनसे भ्रमित युवाओं की आपत्तियों से सत्य को बदला तो नहीं जा सकता ? हम कहें आग लगा कर तवे पर रोटियां डाल दें, तथा किसी को हिलाने भी न दें; तो रोटियां जलना स्वाभाविक है। इसके लिए रोटी को आग से हटाना ही होगा । निश्चित ही अब इसे रोकने का समय आ गया है।
यह कहा जा सकता है, कि रावण तो त्रेता युग में था। हाँ, उसने भी सीता माता का अपहरण तो किया, किन्तु शीलहरण नहीं। अनजाने नहीं, कुचक्र पूर्वक किये गए, इतने अपराध के लिए; पूरे वंश का नाश तथा युगों युगों तक समाज में इसके प्रति जागरूकता बनाने वाले हमारे राष्ट्रीय पर्व, हमारी राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक हैं। वैलेंटाइन डे, ये डे -वो डे केवल आर्चीज़ जैसे महंगे सन्देश पत्र (ग्रीटिंग कार्ड) बेचने के उपभोग्तावादी, व किसी न किसी बहाने हमारे चेतना के पर्व हटाने के; चेतन संस्कृति को अपसंस्कृति में बदलने के, कुचक्र को समझने की आवश्यकता है। 
फिल्मों व चेनलों में शैली (स्टाइल) के नाम पर जो सिखाया जा रहा है। उसकी राष्टीय चेतना में सकारात्मक नहीं नकारात्मक भूमिका है। किसी फ़िल्मी या नायिका की किसी अदा को बार बार दिखाया जाता है। अभी किसी रियेलिटी शो में कहा व दिखाया गया, किसी फिल्म में नायक अक्षय ने जैसे (हे ...) कहा उसे दोहराना था। अथवा कहीं सलमान खान ने एक कपडा अपनी टांगों के बिच जैसे चलाया वही दोहराना, जैसी अनावश्यक बातें अथवा हमारे सामाजिक पारिवारिक सम्बन्ध के मूल तत्व के रहित केवल लोकप्रियता पाने हेतु इन नामों से ये डे -वो डे बनाकर, चालाकी से उपभोगतावाद बढाने के अतिरिक्त,
इसमें हमारी चेतना व संस्कृति का कोई अंश नहीं है। 
अभी कमल हसन की एक फिल्म को मुस्लिम विरोध के कारण, दक्षिण में एक राज्य सरकार ने रोक लगा दी। इस प्रकार तुष्टीकरण से सदा उनका मनोबल बढाया जाता रहा है। इसके पूर्व अनेकों अवसरों पर हिन्दू भावनाओं पर आघात होते रहे। ऐसी फिल्मों व अन्य कार्यक्रमों तथा हुसैन के चित्रों व उसकी प्रदर्शनी के विरोध को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का विरोध बताया जाता रहा। किन्तु अब किसी के द्वारा मुस्लिमों से अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता या सहृदयता की अपेक्षा नहीं की गई।
हमारा लक्ष्य किसी सम्प्रदाय का विरोध नहीं अपितु ये दोहरे मापदंड व तुष्टीकरण की कुटिल नीति व इसके दुष्परिणामों से देश बचाने का है। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ही धार्मिक /सांप्रदायिक भेदभाव का निकृष्ट राष्ट्र विरोधी कार्य करना शर्मनिर्पेक्षता है। समाज व राष्ट्र के लिए अहितकर है। स्वयंभू धर्मनिरपेक्ष जो दूसरों को साम्प्रदायिक कहते हैं, स्वयं साम्प्रदायिकता के निकृष्टतम उदाहरण हैं। 
ऐसे इन शर्मनिर्पेक्ष तत्वों से सचेत रह कर, इनके कुचक्र से समाज को बचाने व राष्ट्र चेतना जगाने की आवश्यकता है। तथा उपभोगतावाद के दिए गए, अपसंस्कृति कारक वेलेंटाइन डे, फैशन व शैली (स्टाइल) नहीं, भारतीय जीवन शैली अपनाने की आवश्यकता है। इसी प्रकार हमारी चेतन संस्कृति से दूर ले जाने के जो अन्य नए नए कुचक्र हैं, उनके स्थान पर अपने पर्व तथा दिवस मनाएं। कल 15 फरवरी बसंत पंचमी है। क्या हमारी युवा पीड़ी को इसके बारे में जानकारी है? भारतीय जीवन शैली व राष्ट्र चेतना से जुड़े पर्व मनाएं।
भारतीय पर्व जानने समझने ऐसी महत्त्वपूर्ण, विविधतापूर्ण नवीनतम जानकारी का सटीक व उत्कृष्ट स्त्रोत - जीवन शैली दर्पण, धर्मसंस्कृति दर्पण, राष्ट्र दर्पण, समाज दर्पण, युवा दर्पण, ...। वेब से पायें हमारे 28 विविध ब्लाग, 5 चेनल, व अन्य सूत्र, नकारात्मक पत्रकारिता के सकारात्मक विकल्प का संकल्प युग दर्पण मिडिया समूह YDMS. 9911111611. yugdarpan.com
पूरा परिवेश पश्चिम की भेंट चढ़ गया है | उसे संस्कारित, योग, आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवन को उचित शैली में ढाल सकते हैं | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
नए रावण व दामिनी -आधुनिकता की उपज
जीवन ठिठोली नहीं, जीने का नाम है |

बसंत पंचमी 15.2.2013, इसे राष्ट्र रक्षा संकल्प दिवस रूप में मनाएं।

बसंत पंचमी 15.2.2013, इसे राष्ट्र रक्षा संकल्प दिवस रूप में मनाएं। 
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बसंत पंचमी के पावन पर्व पर माँ सरस्वती की कृपा हम सब पर बनी रहे । बसंत महोत्सव एक उल्लास का माह है । बसंत ऋतु का आगमन: प्रकृति अपने आगमन का आभास आपको स्वत: करा देती है खेतो मे पीली पीली सरसों और हरे गेहूं का सामंजस्य एक कलाकार के द्वारा उकेरी हुई कलाकृति की भाति ह्रदय को प्रफुल्लित करता है । बसंत पंचमी के दिन नए कार्यो का शुभारम्भ हो जाता है। प्राचीन समय मे बच्चो की पढाई आज से ही शुरू होती थी, तख्ती पूजी जाती थी।
आज बसंत पंचमी वीर हकीकत राय का बलिदान दिवस है, हो सके तो बहादुर बालक की वीरता का स्मरण करे। बसंत पंचमी 15.2.2013 तथा वीर बालक हकीकत राय का बलिदान दिवस, देश की वर्तमान दुर्दशा से निकलने के लिए, हमें फिर से ऐसे बालक घर घर में हों, यह संकल्प लेना चाहिए। 
मुग़ल काल में अब से 280 वर्ष पूर्व बसंत पंचमी के दिन, बसंत के रंग में भंग डाला गया, आज भी देश वही सब कहीं अधिक भुगत रहा है। तब देश व धर्म के लिए भागमल खत्री (सियालकोट पंजाब) व माता दुर्गा देवी के 12 वर्षीय वीर बालक हकीकत राय का 1734 में बलिदान हो गया। देश की स्वतंत्रता के लिए अमर शहीद भगत सिंह, राज गुरु, सुखदेव, हँसते -2 फांसी के तख्ते को चूम गए, तो इसी परम्परा की कड़ी थी। 
आधुनिकता व कथित प्रगतिशीलता की शर्मनिर्पेक्षता ने वह कड़ी तोड़ डाली, अब क्रान्तिकारी नहीं बलात्कारी पैदा होने लगे। परम्परा की पुरानी कड़ियों को जोड़ कर, आधुनिक इंडिया को बदल, आदर्श भारत बनायें। दिल माने तो, यह सन्देश घर घर पहुचाएं। -तिलक युग दर्पण मीडिया समूह YDMS. 9911111611. 
वीर हकीकत राय की जीवन गाथा: यह 1734 घटना की है। जब भारत पर मुगलों का क्रूर शासन था। भागमल खत्री (सियालकोट पंजाब) व माता दुर्गा देवी के धर्म परायण, आरंभ से ही कुशाग्र बुद्धि रहे वीर बालक हकीकत राय ने 4-5 वर्ष की आयु मे ही इतिहास तथा संस्‍कृत आदि विषय का पर्याप्‍त अध्‍ययन कर लिया था। 10 वर्ष की आयु मे फारसी पढ़ने के लिये मौलबी के पास मदरसे मे भेजा गया। वहॉं के मुसलमान छात्र हिन्‍दू बालको तथा हिन्‍दू देवी देवताओं को अपशब्‍द कहते थे। बालक हकीकत उन सब के कुतर्को का प्रतिवाद करता और उन मुस्लिम छात्रों को वाद-विवाद मे पराजित कर देता। 
तब एक दिन कुछ मुसलमान बच्चो ने मिलकर उसे गालियाँ दीं। पहले तो वह चुप रहा। वैसे भी सहनशीलता तो हिन्दुओं का गुण है ही... किंतु जब उन उदंड बच्चों ने धर्म का अपमान की गालियाँ देनी शुरु कीं, तब उस वीर बालक से अपने धर्म का अपमान से सहा नहीं गया।
हकीकत राय ने कहाः "अब हद हो गयी ! अपने लिए तो मैंने सहनशक्ति को उपयोग किया किन्तु मेरे धर्म, गुरु और भगवान के लिए एक भी शब्द बोलोगे तो यह मेरी सहनशक्ति से बाहर की बात है। मेरे पास भी जुबान है। मैं भी तुम्हें बोल सकता हूँ।" उद्दंड बच्चों ने कहाः "बोलकर तो दिखा ! हम तेरी खबर ले लेंगे।"हकीकत राय ने भी उनको दो-चार कटु शब्द सुना दिये। बस, उन्हीं दो-चार शब्दों को सुनकर मुल्ला-मौलवियों को खून उबल पड़ा। वे हकीकत राय को ठीक करने का अवसर ढूँढने लगे। एक ओर वे सब लोग और हकीकत राय अकेला दूसरा ओर।
उस समय मुगलों का ही शासन था, बालक के परिजनो के द्वारा लाख सही बात बताने के बाद भी, काजी ने एक न सुनी। इसलिए हकीकत राय को जेल में कैद कर दिया गया और निर्णय सुनाया कि 'यदि तुम कलमा पढ़ लो और मुसलमान बन जाओ तो तुम्हें अभी माफ कर दिया जायेगा और यदि तुम मुसलमान नहीं बनोगे तो तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दिया जायेगा।'
उस बालक ने कहा मैंने गलत नही कहा और मैं इस्लाम स्वीकार नही करूँगा । हकीकत राय के माता-पिता जेल के बाहर आँसू बहा रहे थेः "बेटा ! तू मुसलमान बन जा। कम से कम हम तुम्हें जीवित तो देख सकेंगे !" .....किंतु उस बुद्धिमान सिंधी बालक ने कहाः "क्या मुसलमान बन जाने के बाद मेरी मृत्यु नहीं होगी?"माता-पिताः "मृत्यु तो होगी ही।"हकीकत रायः ".... तो फिर मैं अपने धर्म में ही मरना पसंद करुँगा। मैं जीते जी दूसरों का धर्म स्वीकार नहीं करूँगा।
"क्रूर शासकों ने हकीकत राय की दृढ़ता देखकर अनेकों धमकियाँ दीं किंतु उस वीर किशोर पर उनकी धमकियों का जोर न चल सका। उसके दृढ़ निश्चय को पूरा राज्य-शासन भी न डिगा सका। अंत में मुगल शासक ने उसे प्रलोभन देकर अपनी ओर खींचना चाहा, किंतु वह बुद्धिमान व वीर किशोर प्रलोभनों में भी नहीं फँसा। अंतत: क्रूर मुसलमान शासकों ने आदेश दिया कि 'बसंत पंचमी के दिन बीच मैदान में हकीकत राय का शिरोच्छेद किया जायेगा।' बीबी फातिमा को वह गाली जो कि वीर हकीकत राय ने दिया ही न था, उस एक गाली के कारण उसे फॉंसी दे दी।
उस वीर हकीकत राय ने गुरु का मंत्र ले रखा था। गुरुमंत्र जपते-जपते उसकी बुद्धि सूक्ष्म हो गयी थी। वह 14 वर्षीय किशोर जल्लाद के हाथ में चमचमाती हुई तलवार देखकर जरा भी भयभीत न हुआ। वरन् अपने गुरु के दिये हुए ज्ञान को याद करने लगे कि 'यह तलवार किसको मारेगी? मार-मारकर इस पाँचभौतिक शरीर को ही तो मारेंगी और ऐसे पंचभौतिक शरीर तो कई बार मिले और कई बार मर गये। ....तो क्या यह तलवार मुझे मारेगी? नहीं, मैं तो अमर आत्मा हूँ... परमात्मा का सनातन अंश हूँ। मुझे यह कैसे मार सकती है? ॐ....ॐ....ॐ...
हकीकत राय गुरु के इस ज्ञान का चिन्तन कर रहा था। तभी क्रूर काजियों ने जल्लाद को तलवार चलाने का आदेश दिया। जल्लाद ने तलवार उठायी किंतु उस निर्दोष बालक को देखकर उसकी अंतरात्मा थरथरा उठी। उसके हाथों से तलवार गिर पड़ी और हाथ काँपने लगे।काजी बोलेः "तुझे नौकरी करनी है कि नहीं? यह तू क्या कर रहा है?" तब हकीकत राय ने अपने हाथों से तलवार उठायी और जल्लाद के हाथ में थमा दी।
फिर वह किशोर आँखें बंद करके परमात्मा का चिन्तन करने लगाः 'हे अकाल पुरुष ! जैसे साँप केंचुली का त्याग करता है, वैसे ही मैं यह नश्वर देह छोड़ रहा हूँ। मुझे तेरे चरणों की प्रीति देना, ताकि मैं तेरे चरणों में पहुँच जाऊँ.... फिर से मुझे वासना का पुतला बनकर इधर-उधर न भटकना पड़े.... अब तू मुझे अपनी ही शरण में रखना.... मैं तेरा हूँ... तू मेरा है.... हे मेरे अकाल पुरुष !
'इतने में जल्लाद ने तलवार चलायी और हकीकत राय का सिर धड़ से अलग हो गया। हकीकत राय ने 14 वर्ष की छोटी सी आयु में धर्म के लिए अपनी बलि दे दी। उसने शरीर छोड़ दिया किंतु धर्म न छोड़ा। बसंत पंचमी के दिन पर उनकी शहादत के सम्मान में. हर वर्ष 1947 भारत के विभाजन तक, एक वार्षिक मेले का आयोजिन किया जाता था और लाहौर इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय के पास वीर हकीकत राय की एक समाधि भी बनाई गई थी । 
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गुरु तेगबहादुर बोलिया,सुनो सिखो ! बड़भागिया, धड़ दीजे धरम न छोड़िये....हकीकत राय ने अपने जीवन में यह वचन चरितार्थ करके दिखा दिया। हकीकत राय तो धर्म के लिए बलिवेदी पर चढ़ गया, किंतु उसके बलिदान ने समाज क हजारों-लाखों जवानों में एक जोश भर दिया कि 'धर्म की राह में प्राण देने पड़े तो देंगे; किंतु विधर्मियों के आगे कभी नहीं झुकेंगे। अपने धर्म में भले भूखे मारना पड़े तो भी स्वीकार है किंतु परधर्म को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।'
ऐसे वीरों के बलिदान के फलस्वरूप ही हमें आजादी प्राप्त हुई है और ऐसे लाखों-लाखों प्राणों की आहुति द्वारा प्राप्त की गयी इस आजादी को हम कहाँ व्यसन, फैशन और चलचित्रों से प्रभावित होकर गँवा न दें ! अब देशवासियों को सावधान रहना होगा। प्रत्येक मनुष्य को अपने धर्म के प्रति श्रद्धा और आदर होना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा हैःश्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।। 'अच्छी प्रकार आचरण में लाये हुए दूसरे के धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म अति उत्तम है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देने वाला है।'
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है | इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका; विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक

बसंत पंचमी 15.2.2013, इसे राष्ट्र रक्षा संकल्प दिवस रूप में मनाएं।
जीवन ठिठोली नहीं, जीने का नाम है |

Monday, March 15, 2010

नव संवत 2067 की शुभकामनाएं.

जीवन ठिठोली नहीं जीने का नाम है
अंग्रेजी का नव वर्ष भले हो मनाया,
उमंग उत्साह चाहे हो जितना दिखाया;
विक्रमी संवत बढ़ चढ़ के मनाएं,
चैत्र के नव रात्रे जब जब आयें;
घर घर सजाएँ उमंग के दीपक जलाएं,
खुशियों से ब्रहमांड तक को महकाएं.
यह केवल एक कैलेंडर नहीं प्रकृति से सम्बन्ध है,
इसी दिन हुआ सृष्टि का आरंभ है.
युगदर्पण परिवार की ओर से अखिल विश्व में फैले हिन्दू  समाज सहित,चरअचर सभी के लिए गुडीपडवा, उगादी,
नवसंवत 2067 की शुभकामनाएं.
HAPPY UGADI TO YOU ALL
Ugadi marks the beginning of a new Hindu lunar
calendar.Celebrated mostly in Andhra Pradesh and
Karnataka, it is  a day when mantras are chanted and
predictions are made for the new year. The most
important part is Panchanga Shravanam -hearing of the
Panchanga. The Panchanga Shravanam is usually done
at the temples by priests. Before reading out the annual
forecasts as predicted in the Panchanga, the officiating
priest reminds the participants of the creator, Brahma,
and the span of creation of the universe. Kavi
Sammelanam (poetry recitation) is a typical Ugadi
feature.A literary feast for poets and public alike, many
new poems written on subjects as varied as Ugadi,
politics, moderntrends and lifestyle are presented. Kavi
Sammelanam is also a launchpad for budding poets. And
is usually carried live on All India Radio's Hyderabad 'A'
station and Doordarshan, Hyderabad following
'panchanga sravanam' (New Year calendar).
The tastes of Ugadi are actually 6,Neem Buds/Flowers
=Bitter, Raw Mango =Tangy, Tamarind Juice =Sour,
Green Chilli=Hot, Jaggery=Sweet, Pinch of Salt =Salt
which symbolizes the fact that life is a mixture of
different expereinces (sadness, happiness, anger, fear,
disgust, surprise) , which should be accepted together
and with equanimity.
HAPPY UGADI TO YOU ALL
तिलक संपादक युगदर्पण. .
(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता
व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-09911111611,9911145678,9540007993.
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