ब्लाग विवरण/संपर्कसूत्र-

जीवन में हास्य ठिठोली आवश्यक भले ही हो,किन्तु जीवन ही कहीं ठिठोली न बन जाये यह भी देखना होगा.सबको साथ ले हंसें किसी पर नहीं! मनोरंजन और छिछोरापन में अंतर है.स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में अंतर है.अधिकार से पहले कर्तव्यों को भी समझें. तिलक.(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/ अनुसरण/ निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/ चैट करें, संपर्कसूत्र- तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 09911145678,09654675533



YDMS चर्चा समूह

बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

Friday, October 19, 2012

अब जालसाज दमानिया अर्थात तीस्ता सीतलवाद -2

अब जालसाज दमानिया अर्थात तीस्ता सीतलवाद -2
भूमि जंजाल में स्वयं भी फंसीं अंजलि दमानिया - 
नई दिल्ली।। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर किसानों की भूमि 'हड़पने' का कथित आरोप लगाने वालीं, अंजलि दमानिया, स्वयं भी इसी तरह के विवाद में घिर गई हैं। इंडिया अंगेस्ट करप्शन (आईएसी) की दमानिया पर आरोप है कि उन्होंने खेती की भूमि खरीदने के लिए, स्वयं को गलत ढंग से किसान प्रमानित किया और बाद में भूमि का योग ('लैंड यूज') बदलवा कर, उसे प्लॉट बना कर बेच दिया। क्या यह सत्य नहीं है ?
उल्लेखनीय है कि वास्तव में, आईएसी की नई 'मख्य नेत्री' अंजली दमानिया का एक परिचय और भी है। वह 'एसवीवी डिवेलपर्स' की निदेशक भी हैं। जिस जगह उन्होंने गडकरी पर भूमि हड़पने का आरोप लगाया है, उसी के आसपास दमानिया की भी 30 एकड़ भूमि है। दमानिया ने 2007 में 'करजत तालुका के कोंडिवाडे गांव' में आदिवासी किसानों से उल्हास नदी के पास भूमि खरीदीं। आदिवासियों से भूमि खरीदने की शर्त पूरी करने के लिए, उन्होंने पास के कलसे गांव में पहले से किसानी करने का प्रमात्र जमा किया
क्या यह सत्य नहीं है ? अपनी 30 एकड़ की भूमि के पास ही, दमानिया ने 2007 में खेती की 7 एकड़ भूमि और खरीदी थी, जिसका योग बदलकर उन्होंने बेच दिया। करजत के दो किसानों से उन्होंने भूमि लेते समय खेती करने का वादा किया था, लेकिन बाद में उस भूमि पर प्लॉट काटकर बेच दिए। दमानिया के अनुसार, रायगढ़ के जिलाधीश ने भूमि का योग बदलने की अनुमति दी थी। क्या यह आलेख ही और पूरी जानकारी देकर बने है ?
इस बारे में प्रतिक्रिया मांगे जाने पर दमानिया ने कहा कि उन्होंने कुछ भी गैरकानूनी नहीं किया। उन्होंने बताया, "मैंने 2007 में खेती की भूमि खरीदी थी और इसके बाद रायगढ़ के जिलाधीश कार्यालय में योग बदलने के लिए आवेदन किया था । 2011 में इसे स्वीकार कर लिया गया और इसके बाद 37 प्लॉट बेचे गए।" वे इस बारे में सारे आलेख दिखाने को तैयार है। दि कोई सोचता है कि मैंने कुछ गलत किया है, तो फिर भूमि योग बदलने का सरकार का नियम गलत है। युग दर्पण की मान्यता है, कि दि यह सरकार के नियम का गलत योग है, तो आदिवासियों के हक़ हड़पने का कार्य, 420 का कार्य है।
उल्लेखनीय यह भी है कि पहले दमानिया और गडकरी के बीच अच्छे मित्रवत सम्बन्ध थे, लेकिन प्रस्तावित कोंधवाने डैम में पड़ रही 30 एकड़ भूमि बचाने में गडकरी से 'भरपूर मदद' न मिलने के कारण वह भाजपा अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल बैठीं। दमानिया ने सिंचाई विभाग को प्रस्तावित डैम को 500 से 700 मीटर स्थानांतरित करने का आग्रह किया, ताकि उनकी (?) भूमि बच सके। उन्होंने 10 जून 2011 को लिखी चिट्ठी में कहा, 'सरकार सर्वे के द्वारा जान सकती है, कि यहां 700 मीटर के आसपास कोई निजी भूमि नहीं है, केवल आदिवासियों की भूमि हैं। हमें पूरा विश्वास है, वह पर्याप्त मुआवजा देकर अधिग्रहीत की जा सकती हैं।' उन्होंने चिट्ठी में लिखा, कि यदि उनकी (?) भूमि बच गई, तो उनका जीवन बच जाएगा।
आरोप है, कि इससे बात न बनने पर, दमानिया ने गडकरी से भी पैरवी की चिट्ठी सिंचाई विभाग को लिखवाई, लेकिन यह भी काम न आया। गडकरी की चिट्ठी से भी बात न बनने के बाद, दमानिया ने सिंचाई विभाग के घोटाले को प्रकट करने की ठान ली, लेकिन इसमें गडकरी ने कोई सहायता करने से मना कर दिया। यहीं से दमानिया की गडकरी से लडाई शुरू हो गई। नए प्रकटकरण से यह प्रशन उठने लगे हैं, कि दमानिया सरकार की सहायता से, गडकरी पर किसानों की भूमि हड़पने का आरोप लगा रही हैं, लेकिन उनकी नैतिकता उस समय कहां थी, जब उन्होंने अपनी भूमि बचाने के लिए, आदिवासियों की भूमि अधिग्रहीत करने की मांग की थी 

जीवन ठिठोली नहीं, जीने का नाम है |

No comments: