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जीवन में हास्य ठिठोली आवश्यक भले ही हो,किन्तु जीवन ही कहीं ठिठोली न बन जाये यह भी देखना होगा.सबको साथ ले हंसें किसी पर नहीं! मनोरंजन और छिछोरापन में अंतर है.स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में अंतर है.अधिकार से पहले कर्तव्यों को भी समझें. तिलक.(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/ अनुसरण/ निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/ चैट करें, संपर्कसूत्र- तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 09911145678,09654675533



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बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

Friday, December 21, 2012

विश्वासघात का विष,

विश्वासघात का विष, The toxin of  Betrayal 
* यही सब 
देखना था, क्या  
भारत से 
इंडिया बन कर ? 
क्या इसी 
स्वछंदता का 
नाम है आज़ादी, 
या 
काले अंग्रेजों ने 
65 वर्ष में 
लिख दी 
सदाचार की बर्बादी ? 
* इंडिया की चमक दमक में 
मेरा भारत 
कहाँ पे खोया है ? 

शर्मनिरपेक्ष माली ने, 
चन्दन के मेरे 
नन्दनवन में, 
धोखे से 
नागफनी क्यों बोया है ?  
* वे 
मर्यादाएं हैं मिटा रहे, 
संसाधन सारे लुटा रहे, 
फिर भी 
क्यों ऑंखें बंद रखे, 
लाचार 
सभी हम लगते हैं ? 
* अब, प्रश्न उठा, 
आखिर कब तक...?, 
प्रश्न स्वयं से पूछो जी, 
जब चोर बनाये 
थानेदार, 
व्यवस्था है 
सारी ही बीमार, 
रक्त रंजित 
इस तन के आखिर, 
कितने घाव गिनाओगे ? 
* हर पल खाये हैं घाव सदा, 
पर हम  थके, 
तुम गिन गिन के थक जाओगे ! 
* यह घाव तो 
सह ही लेंगे हम, 
झूठे आश्वासन 
दे देकर; 
विश्वासघात 
फिर करके तुम, 
नए घाव दे जाओगे ! 
* गले सड़े फल 
लाने वाले की 
वाह वाह से क्या जाने; 
उपहास कहें या 
भ्रम का जाल 
इसे मानें ?
** विश्वासघात का विष 
अभी कितना और पिलाओगे ? 
अभी कितना और पिलाओगे ?
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||" युगदर्पण
जीवन ठिठोली नहीं, जीने का नाम है |

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